Sunday, November 29, 2009

OROP and IESM

OROP और IESM
पेंशन उन सेवाओं का मुआवजा है जो हम अतीत से कर चुके हैं. अगर यह सेवाएँ बराबर थी तो मुआवजा भी बराबर होना चाहिए. अगर २ फौजी बराबर सर्विस के बाद और एक ही रंक से सेवा निवृत होते हैं, तो उनकी पेंशन भी समान होनी चाहिए. येही OROP का सिद्धांत है.
OROP २५ साल से ज्यादा पुरानी मांग है. छठे वेतन आयोग के बाद IESM के नेत्रत्व में OROP का अभियान जोर शोर से चला है. इसी अभियान के नतीजा है कि आज सभी भारत वासी OROP के मूल सिधान्तों से वाकिफ हैं. IESM यह संघर्ष को अनुसाशन और कानूनी दायरे में चलता आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा.
संघर्ष का सबसे कामयाब तरीका मेडल जमा करने का है. सरकार के पास इसका कोई जवाबी हल नहीं है. इसी कि बदौलत, OROP को राष्ट्रपति ने भी २००९ में लोक सभा को दिए अपने वार्षिक भाषण में शामिल किया. इसी संघर्ष कि वजह से १०-१०-१९९७ से पहले के सेवा निवृत सेनानिओं को १०-१०-१९९७ के बाद वालों के बराबर पेंशन देने कि घोषणा सरकार द्वारा के गयी. १-१-२००६ से पूर्व सेवा निवृत JCO और जवानों के पेंशन में भी काफी बढ़ोतरी हुई है, जिसके बारे में सरकारी आदेश आने की आशा है.
पेंशन में बढ़ोतरी ज़रूर हुई है, लेकिन OROP अभी भी नहीं मिला है. संघर्ष जारी रखना पड़ेगा. जो पूर्व सैनिक इसमें शामिल अभी तक नहीं हुए हैं, वो तुरंत IESM के सदस्य बनें. ( सदस्य बनने की आजीवन फीस है- अफसर रु ५००/=, JCO- रु २००/=, और बाकी सब रु १००/=. सैनिक वीरांगनाओं निशुल्क सदस्य बन सकती हैं ). आपसे यह भी अनुरोध है कि अपने मेडल भी जिला इन्चार्गे के पास जमा करवाएं.
OROP के अलावा IESM सैनिक कल्याण के और कई कामों में लगा है, जैसे ECHS, पेंशन और कैंटीन सुविधाओं में अव्वल दर्जे का सुधर लाना. आइये, हम सब मिल कर सैनिक कल्याण कि गतिविधियों को मिल कर आगे ले चलें,
जय हिंद !!
लेफ्टिनेंट जनरल राज कादयान,
अध्यक्ष IESM